मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा
मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा
तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा
सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का
मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा
दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में
आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा
मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही
ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा
🖋
साहिर लुधियानवी
Himayat Ali Meer
तेरा वा'दा तो नहीं हूँ जो बदल जाऊँगा
सोज़ भर दो मिरे सपने में ग़म-ए-उल्फ़त का
मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा
दर्द कहता है ये घबरा के शब-ए-फ़ुर्क़त में
आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा
मुझ को समझाओ न 'साहिर' मैं इक दिन ख़ुद ही
ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा
🖋
साहिर लुधियानवी
Himayat Ali Meer


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